08 अगस्त

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board,History and Functions

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board

https://www.topperskey.com/2024/08/waqf%20board%20.html

दोस्तों वक्फ बोर्ड के बारे में आप ने  सुना ही होगा, आज हर कोई जानना जा रहा है वक्फ बोर्ड के बारे में | इस सकन्ध मे मैं आपके उन्हीं सवालों का जवाव देने की कोशिश करूंगी जो वक्फ बोर्ड के बारे में आपके दिमाग में चल रहे होंगे |

वक्फ बोर्ड की स्थापना 

वक्फ बोर्ड  का गठन  1954 में हुआ, बाद में 1995 और 2013 में संसाधनो के द्वारा इस बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दी गईं | 

वक्फ क्या है और इसके प्रकार

वक्फ का अर्थ है खुदा के नाम पर लोगों के उपकार के लिए दान वस्तु |
वक्फ के निम्न चार प्रकार हैं :-
(क)  नकद वक्फ
(ख)  कॉर्पोरेट वक्फ 
(ग)  संपत्ति वक्फ 
(घ)  पारिवारिक वक्फ 
(च)  धर्मार्थ वक्फ 

वक्फ की कार्यप्रणाली

भारत में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड है जिसे केंद्रीय वक्फ परिषद कहेंगे और 32 स्टेट बोर्ड हैं | सैंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री होता है | जब कोई व्यक्ति अल्लाह या इस्लाम के नाम पर किसी भी तरह की संपत्ति या पैसा दान करता है तो उस संपत्ति या पैसे की देखरेख वक्फ बोर्ड करता है | 

वक्फ बोर्ड का काम 

वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति के जांच कर सकता है और उस पर अपना दावा कर सकता है | अगर किसी व्यक्ति का उस जमीन पर कब्जा है तो यह उस की जिम्मेवारी है कि अपना हक सावित करे | बोर्ड के फैसले को वक्फ एक्ट के सेक्शन 85 के तहत किसी भी कोर्ट में चुनौति देना मुश्किल है | 

क्या वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है ?

जो संपत्तियाँ निजी संपत्तियाँ या परिसंपत्तियाँ जिनका वक्फ संपत्ति के रूप में नामांकन नहीं है और जिनका वक्फ से कोई ऐतिहासिक या कानूनी संबंध नहीं है उन पर वक्फ दावा नहीं कर सकता |

वक्फ बोर्ड की संपत्ति

अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,65,646 अचल संपत्तियाँ थीं | यह संपत्तियाँ करीब 9 एकड़ की हैं | भारत में सेना व रेलवे के बाद वक्फ के पास ही सबसे ज्यादा जमीन है | वक्फ के पास करीब 1.2 लाख करोड़ रूपये मूल्य का भूमी बैंक  है |  

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02 अप्रैल

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

 जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?


दोस्तों कच्चातिवू द्वीप का एक मुद्दा आज कल भारत देश में छाया हुआ है , आप सभी की इच्छा होगी इस द्वीप के बारे में जानने की | आप सभी जानना चाहते होंगे कच्चातिवू द्वीप के इतिहास के बारे में यह द्वीप कहाँ है किस के स्वामित्व में है तथा और भी बहुत कुच्छ | आज मैं आप को कच्चातिवू द्वीप के बारे में कुछ अनजाने तथ्य बताने जा रही हूँ जो श्याद आप को मालूम नहीं हैं |

कच्चातिवू द्वीप कहाँ है ?

कच्चातिवू द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरू मध्य स्थित एक स्थान है | यह 285 एकड़ में फैला हुआ है | यह द्वीप भारत के रामेश्वरम से लगभग 14 समूद्री मील तथा श्रीलंका के जाफना से 19 किलोमीटर दूर है |यह द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को एक तरह से जोड़ता हुआ दिखता है |  इस द्वीप में एक सेंट एंथोनी चर्च है जो 20 वीं सदी में बना था | 

कच्चातिवू द्वीप पर अधिकार :-

1505 से  1658 ईतक इस द्वीप पर पुर्तगालियों का शासन था | फिर इस पर 17 वीं शताब्दी तक रामनद साम्राज्य का शासन रहा | अङ्ग्रेज़ी शासन के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बताया गया | 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने इस द्वीप पर अपना अपना दावा किया और यह विवाद का कारण बन गया |
समुद्री सीमा के निर्धारण के लिए भारत और श्रीलंका के बीच 26 जून 1974 को कोलंबो में और 28 जून 1974 में दिल्ली में वार्ता हुई जिसमें कुछ शर्तों पर
कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया | शर्तें यह थीं की भारतीय मछुआरे अपने जाल सुखाने के लिए कच्चातिवू द्वीप में जा सकते हैं तथा भारत के लोग बिना वीजा के द्वीप में स्थित चर्च में जा सकते हैं  |
द्वीप को श्रीलंका के हवाले सौंपते हुए तमिलनाडु विधानसभा की सहमति नहीं ली गई , तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने इस का कड़ा विरोध भी किया था |
1976 में एक और समझौते के कारण एक देश को दूसरे देश के आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया अत: अब कच्चातिवू द्वीप में भारतीय मछुआरे नहीं जा सकते थे | 
1991 में तमिलनाडू विधानसभा में समझौते के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया तथा  इस द्वीप को पुन: प्राप्त करने की मांग उठी |2008 में भी तत्कालीन नेता  जयललीता ने उच्चतम न्यायालय में यह अर्जी दी थी की बिना किसी संवैधानिक संसोधन के कच्चातिवू द्वीप को किसी अन्य देश को सौंपा नहीं जा सकता | 2011 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जयललीता जी ने एक बार फिर द्वीप को लेकर प्रस्ताव पारित करवाया|

कच्चातिवू द्वीप के हालात यह हैं की भारतीय मछुआरे मछली पकड़ते हुए यहाँ पहुँच जाते हैं और श्रीलंका की नौसेना कई बार उन्हें हिरासत में ले चुकी है |

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31 मार्च

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

दोस्तों आप सभी को पता है की 30 मार्च 2024 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (मरणोपरांत) ,पूर्ण प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (मरणोपरांत) ,पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (मरणोपरांत) और कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन (मरणोपरांत) को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया है | यह सम्मान श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दिया जाएगा , वे तबीयत खराब होने के कारण सम्मान समारोह में शामिल नहीं हो पाये अत: राष्ट्रपति जी यह पुरस्कार 31 मार्च को उन के घर जाकर देंगी |

आप को यह जानने की इच्छा  जरूर होगी की भारत रत्न होता क्या है ,भारत रत्न किसे दिया जाता है और क्यों दिया जाता है ? आज इस स्कन्ध में मैं आप को भारत रत्न के बारे में बताऊँगी | 

भारत रत्न सम्मान क्या होता है ?
भारत रत्न भारत देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है | यह पुरस्कार भारत में दिये जाने बाले कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है | यह पुरस्कार असाधारण और सर्वोच्च सेवा को मान्यता देने के लिए दिया जाता है |

भारत रत्न किसे मिलता है ?
भारत रत्न साहित्य ,कला ,विज्ञान ,सार्वजनिक सेवा तथा राजनीति के क्षेत्र में किसी वैज्ञानिक, उद्योगपति ,लेखक, समाजसेवी या विचारक को दिया जाता है | 
यह सम्मान जाति,लिंग,पद या व्यवसाय के भेदभाव के बिना असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है | 1954 के नियमों के अनुसार  यह पुरस्कार साहित्य ,कला ,विज्ञान व सार्वजनिक सेवाओं में उत्कृष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता था | दिसंबर 2011 में " मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र " तथा खेलकूद के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि प्राप्त करने बालों को भी नियमों में शामिल किया गया | 
यह पुरस्कार भारतीय नागरिकों के साथ -साथ प्राकृतिक भारतीय नागरिकों व गैर भारतियों को भी दिया जा सकता है |

भारत रत्न की शुरुआत :-
02 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के सचिव कार्यालय से एक प्रैस विज्ञप्ति जारी की गई ,जिसमें डॉ नागरिक सम्मानों की घोषणा हुई , भारत रत्न और तीन स्तरीय पद्म विभूषण | इस पुरस्कार का दो बार निलंबन भी किया जा चुका है , पहला 1977 में जो 25 जनवरी 1980 में रद्द किया गया ,दूसरा 1992 में जिसे 1995 में रद्द किया गया | 
1954 तक यह पुरस्कार जीवित लोगों को ही दिया जाता था , लेकिन 1966 के बाद से यह मृतयोपरांत भी दिया जाने लगा | 

भारत रत्न के प्रथम विजेता :-
1954 में सर्वप्रथम यह सम्मान प्राप्त करने वाले भारत संघ के पूर्व गवर्नर जनरल सी राजागोपालाचारी ,भारतीय गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और भारतीय भौतिक विज्ञानी सी वी रमन थे |
मरणोपरांत इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे |

भारत रत्न प्राप्त करने वाले को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं ?
इस सम्मान को प्राप्त करने वाले को किसी भी तरह की धनराशी नहीं दी जाती ,बल्कि सम्मानित व्यक्ति को राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा कई सुविधाएं दी जाती हैं | सम्मानित व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री के बराबर वी आई पी का दर्जा मिलता है |उन्हें आयकर में छूट होती है | उनके लिए  निशुल्क यात्रा का प्रावधान है | 
सम्मानित व्यक्ति भारत रत्न का प्रयोग अपने नाम के पहले या बाद में नहीं कर सकता , हालांकि वह अपने लेटर हेड ,वीजीटिंग कार्ड या अपने बायोडाटा में "राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भारत रत्न " या " भारत रत्न प्राप्तकार्ता " जोड़ सकता है |
प्राप्त करता को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता है |

भारत रत्न का डिजाइन:-
भारत रत्न शुद्ध तांबे से बने पीपल के पत्ते की तरह दिखाता है , यह 58 एमएम  लंबा ,47 एमएम चौड़ा और 31 एमएम मोटा होता है | पत्ते के ऊपर प्लैटिनम का बना चमकता सूरज है | पत्ते के किनारे भी प्लैटिनम के होते हैं |
सूरज के नीचे चांदी से हिन्दी में भारत रत्न लिखा होता है | पत्ते के पीछे अशोक स्तम्भ के नीचे "सत्यमेव जयते " लिखा होता है | इस सम्मान को श्वेत रिब्बन के साथ गले में पहनते हैं |

भारत रत्न कौन देता है ?
पुरस्कार प्राप्तकर्ता को देश के प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है ,मंत्रीमंडल के सदस्य ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी किसी के नाम की सिफ़ारिश कर सकते हैं |प्रधानमंत्री कार्यालय में विचार विमर्श के बाद ये नाम राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं |


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24 मार्च

Holika Dahan Katha | जानें होलिका दहन की क्या कहानी है

 Holika Dahan Katha | जानें होलिका दहन की क्या कहानी है 

Holika Dahan Katha | जानें होलिका दहन की क्या कहानी है
Amazing Facts (अद्भुत रहस्य )

दोस्तों जैसा की आप सभी को मालूम है हिन्दू धर्म में बहुत से पर्व मनाए जाते है और इनमें कई पर्व ऐसे हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत की विजय के रूप में मनाए जाते हैं | इन्हीं पर्वों मे से एक है होली तथा होलिका दहन का उत्सव |

होलिका दहन कब मनाया जाता है :- होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंगों बाली होली खेलने से एक दिन पहले मनाया जाता है |

होलिका दहन के पीछे की कहानी :- विष्णु पुराण के अनुसार सतयुग में महर्षि कश्यप और उन की पत्नी दिति के दो पुत्र हुए जिन का नाम हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष रखा गया | हिरण्याक्ष का बद्ध भगवान ने वराह अवतार लेकर किया था |

हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया की उसे ना तो कोई मनुष्य मार सके ना ही कोई पशु ,वह ना तो दिन मे मरे ना रात को ,ना घर के अंदर ना बाहर ,ना किसी शस्त्र से ना किसी अस्त्र से | यह वरदान प्राप्त कर के वह अहंकारी हो गया , उस ने इन्द्र लोक को जीत लिया तथा तीनों लोकों को कष्ट देने लगा, वह चाहता था को सभी लोग उसे भगवान माने और उस की पूजा करें | वह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के हरदोई का शासक हुआ , हरि (भगवान) का विरोधी होने के कारण उसने अपने राज्य का नाम हरि द्रोही रखा था | 

हिरण्यकशिपु की पत्नि का नाम कयाधु था ,उन के चार पुत्र हुए जिन के ना प्रह्लाद ,अनुहल्लाद ,संहलाद और हल्लद  रखे गए | प्रह्लाद विष्णु भगवान का उपासक हुआ, प्रह्लाद की इस बात से हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित रहता था | विष्णु भक्ति को छुड़वाने के लिए हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई कष्ट दिये लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति पे अड़िग रहा, अंत में हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मृत्यु दंड देने का निर्णय लिया | हिरण्यकशिपु की होलिका नाम की बहन थी जिसे वरदान था की वह आग से नहीं जलेगी | हिरण्यकशिपु ने होलिका से कहा की वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि मे प्रवेश कर जाये जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जायेगा ,लेकिन इस से उल्टा हुआ होलिका अग्नि में जल गई और प्रह्लाद बच गए | 

एक और प्रयास में हिरण्यकशिपु ने एक लोहे के खंभे को गर्म किया और प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा ,भगवान विष्णु जी ने एक बार फिर प्रह्लाद को नरसिंह रूप मे आकर बचाया और हिरण्यकशिपु का अंत किया| 

बुराई पर अच्छाई पर इसी जीत की याद में हर साल होलिका दहन किया जाता है तथा अगले दिन रंग खेले जाते हैं |

हिरण्यकशिपु और हिरण्यकश्यप नाम में मतभेद :-हिरण्यकशिपु  नाम   का अर्थ है अग्नि जैसे रंग के केश बाला , लेकिन कालांतर में अनिष्ट या बुरे कामों के कारण हिरण्यकशिपु को हिरण्यकश्यप नाम से जाना जाने लगा जिस का अर्थ है अनिष्टकारी |दोनों ही नाम एक ही हैं |

हिरण्यकशिपु की मृत्यु का स्थान  :- हिरण्यकशिपु की मृत्यु वर्तमान के  बिहार , पूर्णिया जिला के जानकीनगर के पास धरहरा में हुई थी , जिसके प्रमाण आज भी यहाँ मिलते हैं |

होली में रंग खेलने की शुरुआत :- रंग खेलने की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के समय में मानी जाती है | एक बार श्रीकृष्ण जी माता यशोदा जी से पूछते हैं की राधा गोरी क्यूँ है और मैं काला क्यों हूँ | तो मात कहती है की कान्हा "राधा को रंग लगा दे , और वह भी तेरे जैसी हो जाएगी "| कान्हा जी ने ऐसा ही किया , वे ग्वालों के साथ चल पड़े और राधा रानी और सखियों को खूब ररंग लगाया , तभी से यह प्रथा चली आ रही है |

एक और मान्यता के अनुसार शोव भगवान ने यमराज को हराने के बाद चीता की राख़ से अपने पूरे शरीर पर लेप लगा लिया था |काशी में खेली जाने वाली मसान होली इसी का प्रमाण है |

वर्तमान में होली का जन्म कहाँ :- सबसे पहले होलिका दहन रानी लक्ष्मीबाई के शहर झांसी के प्राचीन नगर एरच में हुआ था |


FAQ

Q1. वैदिक काल में होली का पर्व किस नाम से मनाया जाता था ?

उत्तर :-वैदिक काल में होली का पर्व नवान्नेष्टि यज्ञ के नाम से मनाया जाता था, इस दिन मनु महाराज का जन्म हुआ था |

Q2. होली में रंग क्या दर्शाते हैं ?

उत्तर :-होली के रंग समानता ,खुशी , उल्लास तथा भाई चारे का प्रतीक हैं |

Q3. क्या मुग़ल शासक भी होली खेलते थे  ?

उत्तर :-19 वीं सदी के इतिहासकार मुंशी जकाउल्लाह की किताब तारीख -ए -हिंदुस्तान में बाबर के होली खेलने के बारे में लिखा है |होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी नाम शाहजहां के समय में दिया गया |अकबर के नौ रत्नो मे से एक अबुल फज़ल की किताब आईन-ए-अकबरी में भी होली से जुड़ी कई कहानियाँ हैं |आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह जफर के होली पर लिखे फाग (क्यों मो पे मारी पिचकारी ,देखो कुंअर जी दूँगी गारी )  आज भी गाये जाते हैं |


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23 मार्च

Vinayak Damodar Savarkar |जानें कौन थे विनायक दामोदर सावरकर

 Vinayak Damodar Savarkar  | जानें कौन थे विनायक दामोदर सावरकर 

Vinayak Damodar Savarkar  |जानें कौन थे विनायक दामोदर सावरकर
विनायक दामोदर सावरकर भारत के स्वतंत्रता सेनानी ,समाज सुधारक, इतिहासकार,राजनेता और उच्च कोटी के विचारक थे | "हिन्दुत्व" की राजनैतिक विचारधारा को विकसित करने का श्रेय विनायक दामोदर सावरकर को ही जाता है | 

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म  :- विनायक जी का जन्म 28 मई 1883 में बम्बई प्रेसीडेंसी के जिला नासिक के गाँव  भागूर में हुआ |उनकी माता जी राधाबाई और पिताजी दामोदर पंत सावरकर थे |इनके गणेश व नारायण दामोदर सावरकर नाम के दो भाई तथा नैनाबाई नाम की एक बहन थी |

विनायक दामोदर सावरकर की शिक्षा  :-  विनायक जी ने शिवाजी हाई स्कूल नासिक से मैट्रिक पास की तथा पुणे में फर्ग्यूसन कॉलेज से स्नातक हुए|  वे क्रांतिकारी छात्रों के लिए इंडियन होम रूल सोसायटी के संस्थापक श्याम जी कृष्ण वर्मा की सहायता से लंदन के ग्रेज़ इन लॉ कॉलेज मे कानून की पढ़ाई के लिए चले गए और 1909 में वार एट लॉ की परीक्षा उतीर्ण की |8 अक्तूबर 1949 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि दी गई |

विनायक दामोदर सावरकर का विवाह  :- विनायक जी का विवाह 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की बेटी यमुनाबाई के साथ हुआ |विनायक जी के पुत्र का नाम विश्वास सावरकर और पुत्री का नाम प्रभात चिपलूणकर था |

विनायक दामोदर सावरकर का क्रांतिकारी जीवन वृत :- विनायक जी में देशभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी, उन्होने अपनी उच्च शिक्षा के दौरान देशभक्ति की भावना को भावना को बढ़ाने के लिए नवयुवकों को इकट्ठा कर के मित्र मेलों का आयोजन किया |

अभिनव भारत नाम के क्रांतिकारी संगठन की स्थापना विनायक जी द्वारा 1904 में की गई | इन्होंने "द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेण्डेंस : 1857" लिखी जो किसी प्रकार से हॉलैंड में प्रकाशित हुई तथा पीक वीक पेपर्स व स्काउट्स पेपर्स के नाम से भारत पहुंचाई गई | विनायक जी को ब्रिटिश सरकार द्वारा 24 दिसंबर 1910 और 31 जनवरी 1911 को दो बार आजीवन कारावास की सजा  सुनाई गई | कलेक्टर  जैकसन  की  हत्या  के लिए उन्हें  7 अप्रैल 1911 को काला पानी की सजा सुनाई गई लेकिन 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक जी के कहने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें रिहा कर दिया गया | 

मृत्यु  :- 01 फरवरी 1966 को विनायक जी ने मृत्युपर्यंत उपवास रखने का निर्णय लिया तथा 26 फरवरी 1966 को भारतीय समय के अनुसार सुबह 10 बजे मृत्यु को प्राप्त हुए | 


FAQ

प्र1.सावरकर जी को कालापानी की सजा क्यों हुई थी ?

उत्तर :- सावरकर जी को कालापानी की सजा 07 अप्रैल 1911 को नासिक जिले के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिए नासिक षड्यंत्र काण्ड के अंतर्गत हुई थी |

प्र2:- राजनैतिक विचारधारा "हिन्दुत्व" का जनक है ?

उत्तर :- 'हिन्दुत्व' शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1892 में चंद्रनाथ बसु ने किया था और बाद में विनायक दामोदर सावरकर द्वारा इस शब्द को लोकप्रिय किया गया |

प्र3. लंदन में अभिनव भारत के संस्थापक कौन थे ?

उत्तर :- अभिनव भारत की स्थापना विनायक दामोदर सावरकर और गणेश दामोदर सावरकर द्वारा की गई |

प्र4. विनायक दामोदर सावरकर को वीर की उपाधि किस ने दी ?

उत्तर :-1936 में प्रसिद्ध नाटक और फिल्म कलाकार ,पत्रकार ,शिक्षाविद ,लेखक व कवि पी के अत्रे द्वारा पुणे के बालमोहन थियेटर में आयोजित  स्वागत कार्यक्रम में सावरकर जी को "स्वातंत्र्यवीर' की उपाधि से संबोधित किया गया |

प्र5 : सावरकर  जी ने आमरण अनशन क्यों किया ? 

उत्तर :- सावरकर जी का मानना था की अगर किसी समाज के लिए आप की उपयोगीय समाप्त हो जाये तो अपनी इच्छा से शरीर छोड देना एक महान कार्य है अत: उन्होने आमरण अनशन किया और 26 फरवरी 1966 को उनका निधन हुआ |


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