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18 अप्रैल

18 अप्रैल को हुई थी इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु | अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें

18 अप्रैल को हुई थी इस महान वैज्ञानिक की मृत्यु | अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें

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जैसा की आप को मालूम है कि 18 अप्रैल को विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु हुई थी ,क्योंकी अल्बर्ट आइंस्टीन

एक जगत प्रसिद्ध व्यक्तित्व थे और उनकी मृत्यु का कारण क्या था तथा उनके लेख आदि कहाँ रखे गए सभी जनाना चाहते हैं |

अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें

(1) अल्बर्ट आइंस्टीन जिन्होंने द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण दिया तथा जिन्हें सैद्धांतिक भौतिकी में उनकी सेवाओं के लिए 1921 का नोबेल पुरस्कार दिया गया का निधन न्यू जर्सी के प्रिंसटन अस्पताल में हुआ था |

(2) हिटलर ने अल्बर्ट आइंस्टीन की हत्या के लिए 5000 डॉलर का ईनाम रखा था |

(3) अल्बर्ट आइंस्टीन को पेट से संबंधित रोग था जिसके कारण उनकी एक बार सर्जरी भी हुई थी |

(4) जब दोबारा उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्होंने सर्जरी से इनकार कर दिया और यह माँ मांगी कि “ मैं जब चाहूँ तब जाना चाहता हूँ ,कृत्रिम रूप से जीवन को लम्बा करना विस्वाद है,मैंने अपना काम कर दिया है अब जानें का समय है ,मैं इसे शान से करूंगा |

(5) अल्बर्ट आइंस्टीन की मृत्यु के बाद डॉ थॉमस हार्वे ने उनके दिमाग को निकाल लिया था व अपने घर ले गया था ,उसने यह काम परिवार कि अनुमति के बिना किया था |

(6) अल्बर्ट आइंस्टीन हैंज को मालूम था की अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने शरीर पर किसी भी परीक्षण की मनाही की थी फिर भी डॉ हार्वे को उसने मस्तिष्क के साथ परीक्षण करने दिया क्योंकि वे मानते थे कि दुनिया के भले के लिए यह जरूरी है |

(7) परीक्षण के लिए उनके मस्तिष्क के केई टुकड़े किए गए थे |

(8) अल्बर्ट आइंस्टीन कि मृत्यु के बाद उनकी वसीयत के अनुच्छेद 13 के तहत उनके कॉपीराइट प्रकाशन अधिकार , पांडुलिपियाँ तथा केई अन्य साहित्य सम्पतियाँ हिब्रू यूनिवर्सिटी ऑफ जेरूसलम (HUJI) में रख दी गयीं थीं |

(9) अल्बर्ट आइंस्टीन के अवशेषों का अंतिम संस्कार ट्रेटन, न्यू जर्सी में हुआ तथा उनकी राख को अज्ञात स्थान पर विखेरा गया |

(10) आज अल्बर्ट आइंस्टीन के मस्तिष्क के हिस्से फिलाडेल्फिया के म्यूटर मेडिकल म्यूजियम में मौजूद हैं |


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2.  

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04 अप्रैल

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित एक्टर डायरेक्टर मनोज कुमार का निधन | मनोज कुमार के भारत कुमार बनने की कहानी

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित एक्टर डायरेक्टर मनोज कुमार का निधन | मनोज कुमार के भारत कुमार बनने की कहानी

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विख्यात अभिनेता मनोज कुमार का 04 अप्रैल 2025 की सुबह 03:30 को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया | मनोज कुमार अपनी देश प्रेम पर आधारित फिल्मों में उत्कृष्ठ अभिनय के लिए मशहूर हुए थे जिनमें “क्रांति “,“शहीद”,”उपकार”,”पूरब और पश्चिम” आदि फिल्में शामिल हैं|

मनोज कुमार का जन्म :-

मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 को ब्रिटिश शासित भारत के एबटाबाद (अभी पाकिस्तान में है ) में हुआ था ,उनके पिता का नाम चंद्र स्वामी तथा माता का नाम सुशीला देवी था | भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार राजस्थान के हनुमानगढ़ में रहने आ गया था |उनका जन्म का नाम हरीकृष्ण गिरी गोस्वामी था , वे बचपन से ही दिलीप कुमार , अशोक कुमार और कामिनी कौशल के प्रशंसक थे | दिलीप कुमार की एक फिल्म शबनम में उनके रोल का नाम दिलीप कुमार था जिसको देखते हुए हरीकृष्ण गिरी गोस्वामी ने अपना नाम मनोज कुमार रख लिया |

अभिनय जीवन (उन्हें क्यों भारत कुमार कहा गया ) :-

मनोज कुमार जी की पहली फिल्म फैशन थी जो 1957 में रिलीज हुई थी |इसके बाद मनोज कुमार जी ने केई फिल्मों में काम किया लेकिन 1965 में आई फिल्म शहीद ने उनके अभिनय को चार चाँद लगा दिए |भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के कहने पर उन्होंने 1967 में अपने निर्देशन में उपकार फिल्म बनाई जो हिट रही |इस फिल्म के गाने जैसे की “ मेरे देश की धरती”, “ दीवानों से ये मत पूछो” और “कसमें वादे प्यार वफ़ा” आदि आज भी नया सा अनुभव देते हैं | इसके अलावा “पूरब और पश्चिम”,”क्रांति” आदि फिल्मों के कारण उनकी राष्ट्रवादी भावना प्रकट हुई , उन्होंने “रोटी कपड़ा और मकान”,”शोर” जैसी सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर फिल्में भी बनाईं | इसी तरह की देश प्रेम और राष्ट्रवादी भावनाओं से सरावोर फिल्मों के कारण उन्हें “भारत कुमार” कहा गया | 2015 में मनोज कुमार के आजीवन योगदान के लिए उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया |

मनोज कुमार को 1992 में पद्मश्री ,सर्वश्रेष्ठ अभिनय और निर्देशन के लिए कई बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन पुरस्कार तथा फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त किए |


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03 अप्रैल

थाईलैंड की पी एम शीनवात्रा ने बैंकॉक में प्रधानमंत्री मोदी को “ द वर्ल्ड त्रिपिटक: सज्जया फोनेटिक एडीशन” भेंट की || जानें त्रिपिटक के बारे में

थाईलैंड की पी एम शीनवात्रा ने बैंकॉक में प्रधानमंत्री मोदी को “ द वर्ल्ड त्रिपिटक: सज्जया फोनेटिक एडीशन” भेंट की || जानें त्रिपिटक के बारे में

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त्रिपिटक किसे कहते है ?


त्रिपिटक का शाब्दिक अर्थ है तीन टोकरियाँ अर्थात बौद्ध धर्म के ग्रंथों का समूह जिसे त्रिपिटक कहते हैं , इसके तीन भाग हैं |

(क) सूत्त पिटक

(ख) विनय पिटक

(ग) अभिधम्म पिटक

सूत्त पिटक में भगवान बुद्ध के प्रवचन उल्लिखित हैं , विनय पिटक में मठ में वास करने के नियम तथा अभिधम्म पिटक में प्रसिद्ध भिक्षुयों और विद्वानों द्वारा सूत्रों पर व्याख्याएँ दी गयीं हैं |यह ग्रंथ मुख्यत: पाली भाषा में लिखा हुआ है तथा इस ग्रंथ का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है |

त्रिपिटक की रचना

त्रिपिटक का रचना काल 100 से 500 ईसा पूर्व है | कहा जाता है की त्रिपिटक तीन संगीतियों मे स्थिर हुई जो बौद्ध धर्म के उत्थान के लिए बुलायी गई थी | पहली संगीती महाकाश्यप स्थवीर द्वारा राजगृह में बुलाई गई थी | दूसरी संगीती बुद्ध परिनिर्वाण के 100 बर्ष बाद बैशाली में बुलाई गई तथा तीसरी संगीती बुद्ध परिनिर्वाण के 236 बर्ष बाद पाटलिपुत्र में सम्राट अशोक के समय तिस्स मोग्गलिपुत्र ने बुलाई थी |


मोदी जी को भेंट किए गए संस्करण का इतिहास 

मोदी जी को पवित्र ग्रंथ “ द वर्ल्ड त्रिपिटक: सज्जया फोनेटिक एडीशन” भेंट किया गया | यह पाली और थाई में लिखा गया है | यह संस्करण राज्य भूमिबोल अदुल्यादेज और रानी सिरीकित के 70 बर्ष के शासन काल की स्मृति में 2016 में थाई सरकार ने “ विश्व टिपिटका परियोजना” के हिस्से के रूप में प्रकाशित किया था |

राजा भूमिबोल 

राजा भूमिबोल थाई सम्राट का सबसे लंबा शासन काल चलाने वाले राजा थे,उनका जन्म 5 दिसंबर 1927 को कैम्ब्रिज मैसाचुसेट्स अमेरिका में हुआ तथा उनका राज तिलक 5 मई 1950 को हुआ था , उन्होंने 70 बर्ष 126 दिन थाईलैंड पर शासन किया |


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01 अप्रैल

विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस |World Autism Awareness day (02 April)



विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस |World Autism Awareness day


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02 अप्रैल को हर साल विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है , आप सभी इस लेख में इस दिवस के महत्व तथा इतिहास के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे |

ऑटिज्म क्या है ?

ऑटिज्म को ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर भी कहा जाता है | इसमें व्यक्ति के मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है तथा उनका मानसिक विकास धीमा होता है | ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्ति संसार को अलग नजर से देखता है तथा उसे व्यवहार ,संचार तथा संकेतों को समझने में कठिनाई आती है |


विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस क्यों मनाया जाता  है ?


दोस्तों विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस लोगों में ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों और किसी भी आयु वर्ग के लोगों के बारे में सही जानकारी देना है ताकि ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्ति अन्य लोगों कि तरह सामान्य जीवन जी सकें |यह दिन इसलिए मनाया जाता है ताकि ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्ति भी आत्मनिर्भर बन सके ,उनके मौलिक अधिकारों तथा मानवाधिकारों कि सुरक्षा हो सके ,उन्हें बेहतर चिकित्सा सुविधाएं दी जा सकें और साथ ही अच्छी शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकें |


विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाने का निर्णय कब लिया गया ?


18 दिसंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस को आधिकारिक रूप में मान्यता मिली तथा 2 अप्रैल को हर साल
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाने का फैसला लिया गया |पहला
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2008 में मनाया गया था |


विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस कैसे मनाया जा सकता है ?


विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस के दिन शैक्षणिक संस्थाओं , सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों में सैमीनार ,भाषण ,संवादात्मक चर्चा तथा वर्कशॉप आयोजित किए जा सकते हैं | सरकारें इस दिन ऑटिज्म से प्रभावित व्यक्तियों के लिए बेहतर कानून ला सकती हैं |



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30 मार्च

गृह मंत्रालय ने जातीय हिंसा रोकने के लिए मणिपुर ,अरुणाचल और नागालैंड में AFSPA कानून 6 महीने के लिए बढ़ा दिया है | क्या है अफस्पा कानून


गृह मंत्रालय ने जातीय हिंसा रोकने के लिए मणिपुर ,अरुणाचल और नागालैंड में  6 महीने के लिए बढ़ा दिया है | क्या है अफस्पा कानून

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AFSPA का पूरा अर्थ

AFSPA का पूरा अर्थ है Armd Forces Special Power Act अर्थात सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम |

क्या है AFSPA कानून

  • अफस्पा कानून के अंतर्गत अशांत घोषित क्षेत्रों में शांति स्थापना के लिए सेना ,राज्य व केन्द्रीय पुलिस बलों को विशेष शक्ति प्रदान की जाती है |
  • अफस्पा कानून के अंतर्गत संदेह होने पर किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है |
  • अफस्पा कानून के अंतर्गत किसी स्थान पर पाँच या पाँच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाई जा सकती है |
  • अफस्पा कानून के अंतर्गत चेतावनी कअ उल्लंघन करने पर सेना को गोली मारने का अधिकार है |
  • अफस्पा कानून के अंतर्गत बिना बारंट के किसी के घर पर भी तलाशी ली जा सकती है |
  • अफस्पा कानून के अंतर्गत राज्य का राज्यपाल या संघ राज्यक्षेत्र का प्रशासक या केन्द्रीय सरकार , जैसा भी मामला हो, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा पूरे राज्य या संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग को अशांत क्षेत्र घोषित कर सकता है |
  • अशांत क्षेत्र वह क्षेत्र है जो जिसमें स्थिति इतनी खतरनाक हो गई है कि नागरिक शक्ति की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक हो गया हो ।
अफस्पा कानून कब लागू हुआ
  • 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के नेतृत्वहीन व हिंसक होने की स्थिति में तत्कालीन वायसराय लिनलिथगो ने सशस्त्र सेना (विशेष शक्तियां) अध्यादेश -1942 लागू किया था |
  • आजादी के बाद अफस्पा कानून पहली बार असम में नागा उग्रवाद को रोकने के लिए लागू किया गया था |
  • विद्रोही नागा नेशनलिस्ट काउंसिल के अंतर्गत 1952 में असम आम चुनाव का वाहिष्कार किया गया ,जिससे निपटने के लिए 1953 में असम लोक व्यवस्था रखरखाव (स्वायत जिला)अधिनियम लागू किया गया |
  • स्थिति के ज्यादा बिगड़ जाने पर 1955 में असम अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू किया गया |
  • नागा उग्रवाद को रोकने के लिए 22 मई 1958 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद द्वारा सशस्त्र बल (असम और मणिपुर )विशेष शक्तियां अध्यादेश लागू किया गया |
  • 1980 के दशक में जब पंजाब व केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, खालिस्तान आंदोलन से जूझ रहे थे, उस दौरान 1983 में केंद्र सरकार ने सशस्त्र बल (पंजाब व चंडीगढ़ )विशेष शक्तियां अधिनियम लागू किया गया था |
  • 1990 में जम्मू और कश्मीर में उग्रवाद और विद्रोह को रोकने के लिए सशस्त्र बल (जम्मू और कश्मीर )विशेषाधिकार अधिनियम लागू किया गया |
  • अफस्पा अधिनियम में 1972 में संसोधन कर किसी क्षेत्र को अशांत घोषित करने कि शक्तियां राज्य के साथ साथ केंद्र सरकार को भी दे दी गयीं |

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24 अगस्त

आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस (International Day of Remambrance and Tribute to the Victims of Terrorism)

 आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस  (International Day of Remembrance and Tribute to the Victims of Terrorism)




आज के युग में आतंकवाद पूरे विश्व के लिए एक चेतावनी बन चुका है ,एक आतंकवादी के लिए मानव मूल्य ,सिद्धांत और मानवाधिकार कोई मायने नहीं  रखते  और जो भी आतंकवाद से पीड़ित होता है वह इसके डर से पूरी जिंदगी उभर भी नहीं पाता ,यहाँ तक की वह अपने चारों तरफ के वातावरण  से अपने आप को अलग ही पाता है |

आतंकवाद से प्रभावित इन्हीं परिवारों के लिए आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है |

आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का कारण 

आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का कारण आतंकवाद से पीड़ितों के हकों तथा मनवाधिकारों  की रक्षा तथा पूरे विश्व का इकट्ठे होकर आतंकवाद पीड़ितों के साथ खड़े रहना है  |

नियुक्त दिन तथा कारण 

आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस 21 अगस्त को हर वर्ष मनाया जाता है | 21 अगस्त  को चुनने का कारण यह है की , इसी दिन 2003 में इराक के बगदाद में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर आतंकवादी हमला हुआ था जिसमे संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त सर्जियो विएरा डी मेलो के साथ 22 अन्य लोग मारे गए थे | 


आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस की स्थापना 

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 20 दिसंबर 2017 को 72/165 के प्रस्ताव के तहत इस दिवस की स्थापना की गई |

FAQ आतंकवाद के पीड़ितों के स्मरण और श्रद्धांजली का अंतर्राष्ट्रीय दिवस के बारे में पूछे गए सवाल 

Q1. विश्व आतंकवाद के पीड़ितों के समरण का दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर :- 21 अगस्त को हर साल |



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2.  AFSPA


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09 अगस्त

ओलंपिक क्या है ,पहला ओलंपिक कहाँ खेला गया ,ओलंपिक का इतिहास

ओलंपिक क्या है ,पहला ओलंपिक कहाँ खेला गया ,ओलंपिक का इतिहास 

https://www.topperskey.com/2024/08/olympic.html

दोस्तो आज के इस लेख में मैं आपको ओलंपिक खेलों के इतिहास के बारे में बताऊँगी | ओलंपिक खेल सबसे पहले कहाँ खेले गए ,भारत ने कब ओलंपिक मे शिरकत की आदि |

ओलंपिक खेल क्या हैं ?

ओलंपिक दुनिया की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता है जिसमें राष्ट्रीय ओलंपिक समितियों के सर्वोपरी एथलीट हिस्सा लेते हैं | यह खेल हर चार साल में होते हैं तथा इन खेलेओ का नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति करती है |

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति

अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति का गठन पियरे डी कोबर्टिन द्वारा 23 जून 1894 में  किया गया |इन्हें आधुनिक ओलंपिक खेलों का जनक भी कहा जाता है | इसी कारण 23 जून को हर साल अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक दिवस मनाया जाता      है |

पियरे डी कोबर्टिन का संक्षिप्त जीवन परिचय 

पियरे डी कोबर्टिन का जन्म 01 जनवरी 1863 को पेरिस में हुआ तथा इनकी मृत्यु 02 फरवरी 1937 में जिनेवा में हुई | पियरे डी कोबर्टिन एक शिक्षाशस्त्री तथा इतिहासकार थे | पियरे डी कोबर्टिन  1896 से 1925 तक अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष थे |

ओलंपिक यह नाम पड़ने का कारण 

ओलंपिक  यह नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि 1896 में एथेंस मे खेला गई प्रतियोगिताएं ओलंपिया पर्वत पर हुई | यह कहा जाता है की उस समय इन खेलों के लिए दो राज्यों या शहरों के बीच की लड़ाई तक को भी स्थगित कर दिया जाता था | हर चार साल में जिस बर्ष यह होता था उस बर्ष को ओलंपियाड कहा जाता था | 

ओलंपिक के लोगो के पाँच रिंग क्या दर्शाते हैं

ओलंपिक के पाँच रिंग पाँच महाद्वीपों अफ्रीका ,अमेरिका ,एशिया ,यूरोप और ओशिनिया  के बीच संबंध को दर्शाते हैं |

ओलंपिक कितने प्रकार के हैं ?

ओलंपिक चार प्रकार के हैं :-
(क)  ग्रीष्मकालीन ओलंपिक :- यह ओलंपिक गर्मियों में खेले जाते है | पहली बार ये ओलंपिक 1896 में ग्रीस की राजधानी एथेंस में खेले गए | 
(ख)  शीतकालीन ओलंपिक :- यह ओलंपिक शीट ऋतु में खेले जाते है | पहली बार यह ओलंपिक 1924 में फ्रांस की राजधानी पेरिस में खेला गया |   
(ग)   पैरालम्पिक :- इस ओलंपिक में दुनिया भर के दिव्याङ्ग भाग लेते हैं | पहली बार यह ओलंपिक 1960 में इटली के रोम में खेला गया |
(घ)   यूथ ओलंपिक :- इस ओलंपिक में 10 बर्ष से कम आयु के बच्चे भाग लेते हैं | पहला यूथ ओलंपिक 2010 में सिंगापुर में खेला गया | 

भारत ने ओलंपिक में पहली बार 1900 में भाग लिया जिसमें नॉर्मन रिचर्ड ने भारत का प्रतिनिधित्व किया | भारत की पहली टीम 1920 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भेजी गई | 1952 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में पहलवान के डी जाधव ने स्वतंत्र भारत के लिए पहला व्यक्तित्व पदक (ब्रोंज मेडल ) जीता |


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08 अगस्त

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board,History and Functions

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board

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दोस्तों वक्फ बोर्ड के बारे में आप ने  सुना ही होगा, आज हर कोई जानना जा रहा है वक्फ बोर्ड के बारे में | इस सकन्ध मे मैं आपके उन्हीं सवालों का जवाव देने की कोशिश करूंगी जो वक्फ बोर्ड के बारे में आपके दिमाग में चल रहे होंगे |

वक्फ बोर्ड की स्थापना 

वक्फ बोर्ड  का गठन  1954 में हुआ, बाद में 1995 और 2013 में संसाधनो के द्वारा इस बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दी गईं | 

वक्फ क्या है और इसके प्रकार

वक्फ का अर्थ है खुदा के नाम पर लोगों के उपकार के लिए दान वस्तु |
वक्फ के निम्न चार प्रकार हैं :-
(क)  नकद वक्फ
(ख)  कॉर्पोरेट वक्फ 
(ग)  संपत्ति वक्फ 
(घ)  पारिवारिक वक्फ 
(च)  धर्मार्थ वक्फ 

वक्फ की कार्यप्रणाली

भारत में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड है जिसे केंद्रीय वक्फ परिषद कहेंगे और 32 स्टेट बोर्ड हैं | सैंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री होता है | जब कोई व्यक्ति अल्लाह या इस्लाम के नाम पर किसी भी तरह की संपत्ति या पैसा दान करता है तो उस संपत्ति या पैसे की देखरेख वक्फ बोर्ड करता है | 

वक्फ बोर्ड का काम 

वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति के जांच कर सकता है और उस पर अपना दावा कर सकता है | अगर किसी व्यक्ति का उस जमीन पर कब्जा है तो यह उस की जिम्मेवारी है कि अपना हक सावित करे | बोर्ड के फैसले को वक्फ एक्ट के सेक्शन 85 के तहत किसी भी कोर्ट में चुनौति देना मुश्किल है | 

क्या वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है ?

जो संपत्तियाँ निजी संपत्तियाँ या परिसंपत्तियाँ जिनका वक्फ संपत्ति के रूप में नामांकन नहीं है और जिनका वक्फ से कोई ऐतिहासिक या कानूनी संबंध नहीं है उन पर वक्फ दावा नहीं कर सकता |

वक्फ बोर्ड की संपत्ति

अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,65,646 अचल संपत्तियाँ थीं | यह संपत्तियाँ करीब 9 एकड़ की हैं | भारत में सेना व रेलवे के बाद वक्फ के पास ही सबसे ज्यादा जमीन है | वक्फ के पास करीब 1.2 लाख करोड़ रूपये मूल्य का भूमी बैंक  है |  

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02 अप्रैल

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

 जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?


दोस्तों कच्चातिवू द्वीप का एक मुद्दा आज कल भारत देश में छाया हुआ है , आप सभी की इच्छा होगी इस द्वीप के बारे में जानने की | आप सभी जानना चाहते होंगे कच्चातिवू द्वीप के इतिहास के बारे में यह द्वीप कहाँ है किस के स्वामित्व में है तथा और भी बहुत कुच्छ | आज मैं आप को कच्चातिवू द्वीप के बारे में कुछ अनजाने तथ्य बताने जा रही हूँ जो श्याद आप को मालूम नहीं हैं |

कच्चातिवू द्वीप कहाँ है ?

कच्चातिवू द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरू मध्य स्थित एक स्थान है | यह 285 एकड़ में फैला हुआ है | यह द्वीप भारत के रामेश्वरम से लगभग 14 समूद्री मील तथा श्रीलंका के जाफना से 19 किलोमीटर दूर है |यह द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को एक तरह से जोड़ता हुआ दिखता है |  इस द्वीप में एक सेंट एंथोनी चर्च है जो 20 वीं सदी में बना था | 

कच्चातिवू द्वीप पर अधिकार :-

1505 से  1658 ईतक इस द्वीप पर पुर्तगालियों का शासन था | फिर इस पर 17 वीं शताब्दी तक रामनद साम्राज्य का शासन रहा | अङ्ग्रेज़ी शासन के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बताया गया | 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने इस द्वीप पर अपना अपना दावा किया और यह विवाद का कारण बन गया |
समुद्री सीमा के निर्धारण के लिए भारत और श्रीलंका के बीच 26 जून 1974 को कोलंबो में और 28 जून 1974 में दिल्ली में वार्ता हुई जिसमें कुछ शर्तों पर
कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया | शर्तें यह थीं की भारतीय मछुआरे अपने जाल सुखाने के लिए कच्चातिवू द्वीप में जा सकते हैं तथा भारत के लोग बिना वीजा के द्वीप में स्थित चर्च में जा सकते हैं  |
द्वीप को श्रीलंका के हवाले सौंपते हुए तमिलनाडु विधानसभा की सहमति नहीं ली गई , तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने इस का कड़ा विरोध भी किया था |
1976 में एक और समझौते के कारण एक देश को दूसरे देश के आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया अत: अब कच्चातिवू द्वीप में भारतीय मछुआरे नहीं जा सकते थे | 
1991 में तमिलनाडू विधानसभा में समझौते के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया तथा  इस द्वीप को पुन: प्राप्त करने की मांग उठी |2008 में भी तत्कालीन नेता  जयललीता ने उच्चतम न्यायालय में यह अर्जी दी थी की बिना किसी संवैधानिक संसोधन के कच्चातिवू द्वीप को किसी अन्य देश को सौंपा नहीं जा सकता | 2011 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जयललीता जी ने एक बार फिर द्वीप को लेकर प्रस्ताव पारित करवाया|

कच्चातिवू द्वीप के हालात यह हैं की भारतीय मछुआरे मछली पकड़ते हुए यहाँ पहुँच जाते हैं और श्रीलंका की नौसेना कई बार उन्हें हिरासत में ले चुकी है |

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31 मार्च

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

दोस्तों आप सभी को पता है की 30 मार्च 2024 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (मरणोपरांत) ,पूर्ण प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (मरणोपरांत) ,पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (मरणोपरांत) और कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन (मरणोपरांत) को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया है | यह सम्मान श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दिया जाएगा , वे तबीयत खराब होने के कारण सम्मान समारोह में शामिल नहीं हो पाये अत: राष्ट्रपति जी यह पुरस्कार 31 मार्च को उन के घर जाकर देंगी |

आप को यह जानने की इच्छा  जरूर होगी की भारत रत्न होता क्या है ,भारत रत्न किसे दिया जाता है और क्यों दिया जाता है ? आज इस स्कन्ध में मैं आप को भारत रत्न के बारे में बताऊँगी | 

भारत रत्न सम्मान क्या होता है ?
भारत रत्न भारत देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है | यह पुरस्कार भारत में दिये जाने बाले कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है | यह पुरस्कार असाधारण और सर्वोच्च सेवा को मान्यता देने के लिए दिया जाता है |

भारत रत्न किसे मिलता है ?
भारत रत्न साहित्य ,कला ,विज्ञान ,सार्वजनिक सेवा तथा राजनीति के क्षेत्र में किसी वैज्ञानिक, उद्योगपति ,लेखक, समाजसेवी या विचारक को दिया जाता है | 
यह सम्मान जाति,लिंग,पद या व्यवसाय के भेदभाव के बिना असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है | 1954 के नियमों के अनुसार  यह पुरस्कार साहित्य ,कला ,विज्ञान व सार्वजनिक सेवाओं में उत्कृष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता था | दिसंबर 2011 में " मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र " तथा खेलकूद के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि प्राप्त करने बालों को भी नियमों में शामिल किया गया | 
यह पुरस्कार भारतीय नागरिकों के साथ -साथ प्राकृतिक भारतीय नागरिकों व गैर भारतियों को भी दिया जा सकता है |

भारत रत्न की शुरुआत :-
02 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के सचिव कार्यालय से एक प्रैस विज्ञप्ति जारी की गई ,जिसमें डॉ नागरिक सम्मानों की घोषणा हुई , भारत रत्न और तीन स्तरीय पद्म विभूषण | इस पुरस्कार का दो बार निलंबन भी किया जा चुका है , पहला 1977 में जो 25 जनवरी 1980 में रद्द किया गया ,दूसरा 1992 में जिसे 1995 में रद्द किया गया | 
1954 तक यह पुरस्कार जीवित लोगों को ही दिया जाता था , लेकिन 1966 के बाद से यह मृतयोपरांत भी दिया जाने लगा | 

भारत रत्न के प्रथम विजेता :-
1954 में सर्वप्रथम यह सम्मान प्राप्त करने वाले भारत संघ के पूर्व गवर्नर जनरल सी राजागोपालाचारी ,भारतीय गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और भारतीय भौतिक विज्ञानी सी वी रमन थे |
मरणोपरांत इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे |

भारत रत्न प्राप्त करने वाले को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं ?
इस सम्मान को प्राप्त करने वाले को किसी भी तरह की धनराशी नहीं दी जाती ,बल्कि सम्मानित व्यक्ति को राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा कई सुविधाएं दी जाती हैं | सम्मानित व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री के बराबर वी आई पी का दर्जा मिलता है |उन्हें आयकर में छूट होती है | उनके लिए  निशुल्क यात्रा का प्रावधान है | 
सम्मानित व्यक्ति भारत रत्न का प्रयोग अपने नाम के पहले या बाद में नहीं कर सकता , हालांकि वह अपने लेटर हेड ,वीजीटिंग कार्ड या अपने बायोडाटा में "राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भारत रत्न " या " भारत रत्न प्राप्तकार्ता " जोड़ सकता है |
प्राप्त करता को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता है |

भारत रत्न का डिजाइन:-
भारत रत्न शुद्ध तांबे से बने पीपल के पत्ते की तरह दिखाता है , यह 58 एमएम  लंबा ,47 एमएम चौड़ा और 31 एमएम मोटा होता है | पत्ते के ऊपर प्लैटिनम का बना चमकता सूरज है | पत्ते के किनारे भी प्लैटिनम के होते हैं |
सूरज के नीचे चांदी से हिन्दी में भारत रत्न लिखा होता है | पत्ते के पीछे अशोक स्तम्भ के नीचे "सत्यमेव जयते " लिखा होता है | इस सम्मान को श्वेत रिब्बन के साथ गले में पहनते हैं |

भारत रत्न कौन देता है ?
पुरस्कार प्राप्तकर्ता को देश के प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है ,मंत्रीमंडल के सदस्य ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी किसी के नाम की सिफ़ारिश कर सकते हैं |प्रधानमंत्री कार्यालय में विचार विमर्श के बाद ये नाम राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं |


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