08 अगस्त

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board,History and Functions

वक्फ बोर्ड की स्थापना ,कार्यप्रणाली और इतिहास | Waqf Board

https://www.topperskey.com/2024/08/waqf%20board%20.html

दोस्तों वक्फ बोर्ड के बारे में आप ने  सुना ही होगा, आज हर कोई जानना जा रहा है वक्फ बोर्ड के बारे में | इस सकन्ध मे मैं आपके उन्हीं सवालों का जवाव देने की कोशिश करूंगी जो वक्फ बोर्ड के बारे में आपके दिमाग में चल रहे होंगे |

वक्फ बोर्ड की स्थापना 

वक्फ बोर्ड  का गठन  1954 में हुआ, बाद में 1995 और 2013 में संसाधनो के द्वारा इस बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दी गईं | 

वक्फ क्या है और इसके प्रकार

वक्फ का अर्थ है खुदा के नाम पर लोगों के उपकार के लिए दान वस्तु |
वक्फ के निम्न चार प्रकार हैं :-
(क)  नकद वक्फ
(ख)  कॉर्पोरेट वक्फ 
(ग)  संपत्ति वक्फ 
(घ)  पारिवारिक वक्फ 
(च)  धर्मार्थ वक्फ 

वक्फ की कार्यप्रणाली

भारत में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड है जिसे केंद्रीय वक्फ परिषद कहेंगे और 32 स्टेट बोर्ड हैं | सैंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री होता है | जब कोई व्यक्ति अल्लाह या इस्लाम के नाम पर किसी भी तरह की संपत्ति या पैसा दान करता है तो उस संपत्ति या पैसे की देखरेख वक्फ बोर्ड करता है | 

वक्फ बोर्ड का काम 

वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति के जांच कर सकता है और उस पर अपना दावा कर सकता है | अगर किसी व्यक्ति का उस जमीन पर कब्जा है तो यह उस की जिम्मेवारी है कि अपना हक सावित करे | बोर्ड के फैसले को वक्फ एक्ट के सेक्शन 85 के तहत किसी भी कोर्ट में चुनौति देना मुश्किल है | 

क्या वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर दावा कर सकता है ?

जो संपत्तियाँ निजी संपत्तियाँ या परिसंपत्तियाँ जिनका वक्फ संपत्ति के रूप में नामांकन नहीं है और जिनका वक्फ से कोई ऐतिहासिक या कानूनी संबंध नहीं है उन पर वक्फ दावा नहीं कर सकता |

वक्फ बोर्ड की संपत्ति

अल्पसंख्यक मंत्रालय के द्वारा दी गई रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,65,646 अचल संपत्तियाँ थीं | यह संपत्तियाँ करीब 9 एकड़ की हैं | भारत में सेना व रेलवे के बाद वक्फ के पास ही सबसे ज्यादा जमीन है | वक्फ के पास करीब 1.2 लाख करोड़ रूपये मूल्य का भूमी बैंक  है |  

आगे पढ़ें :-





Please Share :-

Share on WhatsApp Share on Facebook Share on Instagram Share on Twitter





02 अप्रैल

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

 जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?

जानें हर चीज कच्चातिवू द्वीप के बारे में | कच्चातिवू द्वीप श्रीलंका को कैसे मिला ?


दोस्तों कच्चातिवू द्वीप का एक मुद्दा आज कल भारत देश में छाया हुआ है , आप सभी की इच्छा होगी इस द्वीप के बारे में जानने की | आप सभी जानना चाहते होंगे कच्चातिवू द्वीप के इतिहास के बारे में यह द्वीप कहाँ है किस के स्वामित्व में है तथा और भी बहुत कुच्छ | आज मैं आप को कच्चातिवू द्वीप के बारे में कुछ अनजाने तथ्य बताने जा रही हूँ जो श्याद आप को मालूम नहीं हैं |

कच्चातिवू द्वीप कहाँ है ?

कच्चातिवू द्वीप भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरू मध्य स्थित एक स्थान है | यह 285 एकड़ में फैला हुआ है | यह द्वीप भारत के रामेश्वरम से लगभग 14 समूद्री मील तथा श्रीलंका के जाफना से 19 किलोमीटर दूर है |यह द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को एक तरह से जोड़ता हुआ दिखता है |  इस द्वीप में एक सेंट एंथोनी चर्च है जो 20 वीं सदी में बना था | 

कच्चातिवू द्वीप पर अधिकार :-

1505 से  1658 ईतक इस द्वीप पर पुर्तगालियों का शासन था | फिर इस पर 17 वीं शताब्दी तक रामनद साम्राज्य का शासन रहा | अङ्ग्रेज़ी शासन के दौरान यह मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बताया गया | 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने इस द्वीप पर अपना अपना दावा किया और यह विवाद का कारण बन गया |
समुद्री सीमा के निर्धारण के लिए भारत और श्रीलंका के बीच 26 जून 1974 को कोलंबो में और 28 जून 1974 में दिल्ली में वार्ता हुई जिसमें कुछ शर्तों पर
कच्चातिवू द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया | शर्तें यह थीं की भारतीय मछुआरे अपने जाल सुखाने के लिए कच्चातिवू द्वीप में जा सकते हैं तथा भारत के लोग बिना वीजा के द्वीप में स्थित चर्च में जा सकते हैं  |
द्वीप को श्रीलंका के हवाले सौंपते हुए तमिलनाडु विधानसभा की सहमति नहीं ली गई , तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने इस का कड़ा विरोध भी किया था |
1976 में एक और समझौते के कारण एक देश को दूसरे देश के आर्थिक क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोक दिया गया अत: अब कच्चातिवू द्वीप में भारतीय मछुआरे नहीं जा सकते थे | 
1991 में तमिलनाडू विधानसभा में समझौते के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया तथा  इस द्वीप को पुन: प्राप्त करने की मांग उठी |2008 में भी तत्कालीन नेता  जयललीता ने उच्चतम न्यायालय में यह अर्जी दी थी की बिना किसी संवैधानिक संसोधन के कच्चातिवू द्वीप को किसी अन्य देश को सौंपा नहीं जा सकता | 2011 में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान जयललीता जी ने एक बार फिर द्वीप को लेकर प्रस्ताव पारित करवाया|

कच्चातिवू द्वीप के हालात यह हैं की भारतीय मछुआरे मछली पकड़ते हुए यहाँ पहुँच जाते हैं और श्रीलंका की नौसेना कई बार उन्हें हिरासत में ले चुकी है |

आगे पढ़ें :-




Please Share :-

Share on WhatsApp Share on Facebook Share on Instagram Share on Twitter

Featured post

सामान्य ज्ञान बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर | प्रतियोगी परीक्षा के लिए हिन्दी GK MCQ (प्रश्नोत्तरी नंबर 10 )

सामान्य ज्ञान बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर | प्रतियोगी परीक्षा के लिए हिन्दी GK MCQ   (प्रश्नोत्तरी नंबर 10 ) लेख का उद्देश्य  : यह लेख प्रति...

Popular Posts