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31 मार्च

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

भारत रत्न के बारे में सम्पूर्ण जानकारी | Know all about Bharat Ratna

दोस्तों आप सभी को पता है की 30 मार्च 2024 को भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू  ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (मरणोपरांत) ,पूर्ण प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव (मरणोपरांत) ,पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (मरणोपरांत) और कृषि वैज्ञानिक डॉ एम एस स्वामीनाथन (मरणोपरांत) को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया है | यह सम्मान श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भी दिया जाएगा , वे तबीयत खराब होने के कारण सम्मान समारोह में शामिल नहीं हो पाये अत: राष्ट्रपति जी यह पुरस्कार 31 मार्च को उन के घर जाकर देंगी |

आप को यह जानने की इच्छा  जरूर होगी की भारत रत्न होता क्या है ,भारत रत्न किसे दिया जाता है और क्यों दिया जाता है ? आज इस स्कन्ध में मैं आप को भारत रत्न के बारे में बताऊँगी | 

भारत रत्न सम्मान क्या होता है ?
भारत रत्न भारत देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है | यह पुरस्कार भारत में दिये जाने बाले कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है | यह पुरस्कार असाधारण और सर्वोच्च सेवा को मान्यता देने के लिए दिया जाता है |

भारत रत्न किसे मिलता है ?
भारत रत्न साहित्य ,कला ,विज्ञान ,सार्वजनिक सेवा तथा राजनीति के क्षेत्र में किसी वैज्ञानिक, उद्योगपति ,लेखक, समाजसेवी या विचारक को दिया जाता है | 
यह सम्मान जाति,लिंग,पद या व्यवसाय के भेदभाव के बिना असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है | 1954 के नियमों के अनुसार  यह पुरस्कार साहित्य ,कला ,विज्ञान व सार्वजनिक सेवाओं में उत्कृष्ठ कार्यों के लिए दिया जाता था | दिसंबर 2011 में " मानव प्रयास के किसी भी क्षेत्र " तथा खेलकूद के क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि प्राप्त करने बालों को भी नियमों में शामिल किया गया | 
यह पुरस्कार भारतीय नागरिकों के साथ -साथ प्राकृतिक भारतीय नागरिकों व गैर भारतियों को भी दिया जा सकता है |

भारत रत्न की शुरुआत :-
02 जनवरी 1954 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के सचिव कार्यालय से एक प्रैस विज्ञप्ति जारी की गई ,जिसमें डॉ नागरिक सम्मानों की घोषणा हुई , भारत रत्न और तीन स्तरीय पद्म विभूषण | इस पुरस्कार का दो बार निलंबन भी किया जा चुका है , पहला 1977 में जो 25 जनवरी 1980 में रद्द किया गया ,दूसरा 1992 में जिसे 1995 में रद्द किया गया | 
1954 तक यह पुरस्कार जीवित लोगों को ही दिया जाता था , लेकिन 1966 के बाद से यह मृतयोपरांत भी दिया जाने लगा | 

भारत रत्न के प्रथम विजेता :-
1954 में सर्वप्रथम यह सम्मान प्राप्त करने वाले भारत संघ के पूर्व गवर्नर जनरल सी राजागोपालाचारी ,भारतीय गणराज्य के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और भारतीय भौतिक विज्ञानी सी वी रमन थे |
मरणोपरांत इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे |

भारत रत्न प्राप्त करने वाले को क्या-क्या सुविधाएं मिलती हैं ?
इस सम्मान को प्राप्त करने वाले को किसी भी तरह की धनराशी नहीं दी जाती ,बल्कि सम्मानित व्यक्ति को राज्य व केंद्र सरकारों द्वारा कई सुविधाएं दी जाती हैं | सम्मानित व्यक्ति को कैबिनेट मंत्री के बराबर वी आई पी का दर्जा मिलता है |उन्हें आयकर में छूट होती है | उनके लिए  निशुल्क यात्रा का प्रावधान है | 
सम्मानित व्यक्ति भारत रत्न का प्रयोग अपने नाम के पहले या बाद में नहीं कर सकता , हालांकि वह अपने लेटर हेड ,वीजीटिंग कार्ड या अपने बायोडाटा में "राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित भारत रत्न " या " भारत रत्न प्राप्तकार्ता " जोड़ सकता है |
प्राप्त करता को राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता है |

भारत रत्न का डिजाइन:-
भारत रत्न शुद्ध तांबे से बने पीपल के पत्ते की तरह दिखाता है , यह 58 एमएम  लंबा ,47 एमएम चौड़ा और 31 एमएम मोटा होता है | पत्ते के ऊपर प्लैटिनम का बना चमकता सूरज है | पत्ते के किनारे भी प्लैटिनम के होते हैं |
सूरज के नीचे चांदी से हिन्दी में भारत रत्न लिखा होता है | पत्ते के पीछे अशोक स्तम्भ के नीचे "सत्यमेव जयते " लिखा होता है | इस सम्मान को श्वेत रिब्बन के साथ गले में पहनते हैं |

भारत रत्न कौन देता है ?
पुरस्कार प्राप्तकर्ता को देश के प्रधानमंत्री द्वारा नामित किया जाता है ,मंत्रीमंडल के सदस्य ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी किसी के नाम की सिफ़ारिश कर सकते हैं |प्रधानमंत्री कार्यालय में विचार विमर्श के बाद ये नाम राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजे जाते हैं |


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24 मार्च

Holika Dahan Katha | जानें होलिका दहन की क्या कहानी है

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Holika Dahan Katha | जानें होलिका दहन की क्या कहानी है
Amazing Facts (अद्भुत रहस्य )

दोस्तों जैसा की आप सभी को मालूम है हिन्दू धर्म में बहुत से पर्व मनाए जाते है और इनमें कई पर्व ऐसे हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत की विजय के रूप में मनाए जाते हैं | इन्हीं पर्वों मे से एक है होली तथा होलिका दहन का उत्सव |

होलिका दहन कब मनाया जाता है :- होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंगों बाली होली खेलने से एक दिन पहले मनाया जाता है |

होलिका दहन के पीछे की कहानी :- विष्णु पुराण के अनुसार सतयुग में महर्षि कश्यप और उन की पत्नी दिति के दो पुत्र हुए जिन का नाम हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष रखा गया | हिरण्याक्ष का बद्ध भगवान ने वराह अवतार लेकर किया था |

हिरण्यकशिपु ने कठिन तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त किया की उसे ना तो कोई मनुष्य मार सके ना ही कोई पशु ,वह ना तो दिन मे मरे ना रात को ,ना घर के अंदर ना बाहर ,ना किसी शस्त्र से ना किसी अस्त्र से | यह वरदान प्राप्त कर के वह अहंकारी हो गया , उस ने इन्द्र लोक को जीत लिया तथा तीनों लोकों को कष्ट देने लगा, वह चाहता था को सभी लोग उसे भगवान माने और उस की पूजा करें | वह वर्तमान में उत्तर प्रदेश के हरदोई का शासक हुआ , हरि (भगवान) का विरोधी होने के कारण उसने अपने राज्य का नाम हरि द्रोही रखा था | 

हिरण्यकशिपु की पत्नि का नाम कयाधु था ,उन के चार पुत्र हुए जिन के ना प्रह्लाद ,अनुहल्लाद ,संहलाद और हल्लद  रखे गए | प्रह्लाद विष्णु भगवान का उपासक हुआ, प्रह्लाद की इस बात से हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित रहता था | विष्णु भक्ति को छुड़वाने के लिए हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई कष्ट दिये लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति पे अड़िग रहा, अंत में हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मृत्यु दंड देने का निर्णय लिया | हिरण्यकशिपु की होलिका नाम की बहन थी जिसे वरदान था की वह आग से नहीं जलेगी | हिरण्यकशिपु ने होलिका से कहा की वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि मे प्रवेश कर जाये जिससे प्रह्लाद जलकर भस्म हो जायेगा ,लेकिन इस से उल्टा हुआ होलिका अग्नि में जल गई और प्रह्लाद बच गए | 

एक और प्रयास में हिरण्यकशिपु ने एक लोहे के खंभे को गर्म किया और प्रह्लाद को उसे गले लगाने को कहा ,भगवान विष्णु जी ने एक बार फिर प्रह्लाद को नरसिंह रूप मे आकर बचाया और हिरण्यकशिपु का अंत किया| 

बुराई पर अच्छाई पर इसी जीत की याद में हर साल होलिका दहन किया जाता है तथा अगले दिन रंग खेले जाते हैं |

हिरण्यकशिपु और हिरण्यकश्यप नाम में मतभेद :-हिरण्यकशिपु  नाम   का अर्थ है अग्नि जैसे रंग के केश बाला , लेकिन कालांतर में अनिष्ट या बुरे कामों के कारण हिरण्यकशिपु को हिरण्यकश्यप नाम से जाना जाने लगा जिस का अर्थ है अनिष्टकारी |दोनों ही नाम एक ही हैं |

हिरण्यकशिपु की मृत्यु का स्थान  :- हिरण्यकशिपु की मृत्यु वर्तमान के  बिहार , पूर्णिया जिला के जानकीनगर के पास धरहरा में हुई थी , जिसके प्रमाण आज भी यहाँ मिलते हैं |

होली में रंग खेलने की शुरुआत :- रंग खेलने की शुरुआत भगवान श्रीकृष्ण के समय में मानी जाती है | एक बार श्रीकृष्ण जी माता यशोदा जी से पूछते हैं की राधा गोरी क्यूँ है और मैं काला क्यों हूँ | तो मात कहती है की कान्हा "राधा को रंग लगा दे , और वह भी तेरे जैसी हो जाएगी "| कान्हा जी ने ऐसा ही किया , वे ग्वालों के साथ चल पड़े और राधा रानी और सखियों को खूब ररंग लगाया , तभी से यह प्रथा चली आ रही है |

एक और मान्यता के अनुसार शोव भगवान ने यमराज को हराने के बाद चीता की राख़ से अपने पूरे शरीर पर लेप लगा लिया था |काशी में खेली जाने वाली मसान होली इसी का प्रमाण है |

वर्तमान में होली का जन्म कहाँ :- सबसे पहले होलिका दहन रानी लक्ष्मीबाई के शहर झांसी के प्राचीन नगर एरच में हुआ था |


FAQ

Q1. वैदिक काल में होली का पर्व किस नाम से मनाया जाता था ?

उत्तर :-वैदिक काल में होली का पर्व नवान्नेष्टि यज्ञ के नाम से मनाया जाता था, इस दिन मनु महाराज का जन्म हुआ था |

Q2. होली में रंग क्या दर्शाते हैं ?

उत्तर :-होली के रंग समानता ,खुशी , उल्लास तथा भाई चारे का प्रतीक हैं |

Q3. क्या मुग़ल शासक भी होली खेलते थे  ?

उत्तर :-19 वीं सदी के इतिहासकार मुंशी जकाउल्लाह की किताब तारीख -ए -हिंदुस्तान में बाबर के होली खेलने के बारे में लिखा है |होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी नाम शाहजहां के समय में दिया गया |अकबर के नौ रत्नो मे से एक अबुल फज़ल की किताब आईन-ए-अकबरी में भी होली से जुड़ी कई कहानियाँ हैं |आखिरी मुग़ल शासक बहादुर शाह जफर के होली पर लिखे फाग (क्यों मो पे मारी पिचकारी ,देखो कुंअर जी दूँगी गारी )  आज भी गाये जाते हैं |


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